यशोधरा और सिद्धार्थ

“कहाँ चले गए थे मुझे छोड़ कर?”

“जाने कहाँ कहाँ नहीं गया, पर तुम्हें न छोड़ पाया…”


“जानते हो, मैंने तुम्हें कहाँ कहाँ नहीं ढूँढ़ा?”

“मैं स्वयं को ढूँढ़ना चाहता था, पर जब एक वट वृक्ष के नीचे बैठा, तब मैंने तुम में स्वयं को पाया”


“नहीं मान सकती, तुम मुझे बुद्धू बनाते हो”

“न मानो, पर मुझे तो अब तुम्हारे महत्त्व का बोध है!”