मृत्यु-शैया
मृत्यु-शैया पर लेटा हूँ - आज पहली बार लगता है जैसे वास्तव में मुक्त हूँ! स्कूल, होमवर्क, कॉलेज, परीक्षा, नौकरी, शादी, तनख्वाह, तरक़्क़ी, रुतबा, शोहरत, घर, बच्चे - धीरे-धीरे जीवन जाल में यूँ ही जकड़ता गया..
ये जीवन मृग-मरीचिका नहीं तो और क्या है?